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धान की किस्म

बिहार में धान की दो किस्में हुईं विकसित, पैदावार में होगी बढ़ोत्तरी

बिहार में धान की दो किस्में हुईं विकसित, पैदावार में होगी बढ़ोत्तरी

बेगूसराय जनपद में 17061 हेक्टेयर के करीब बंजर जमीन है। वहीं, 11001 हेक्टेयर पर किसान खेती नहीं करते हैं। अब ऐसी स्थिति में इन जगहों पर किसान राजेंद्र विभूति प्रजाति की खेती कर सकते हैं। बतादें कि धान बिहार की मुख्य फसल है। नवादा, औरंगाबाद, पटना, गया, नालंदा और भागलपुर समेत तकरीबन समस्त जनपदों में धान की खेती की जाती है। मुख्य बात यह है, कि समस्त जनपदों में किसान मृदा के अनुरूप भिन्न-भिन्न किस्मों के धान की खेती किया करते हैं। सबका भाव एवं स्वाद भी भिन्न-भिन्न होता है। पश्चिमी चंपारण जनपद में सर्वाधिक मर्चा धान की खेती की जाती है। विगत अप्रैल महीने में इसको जीआई टैग भी मिला था। इसी प्रकार पटना जनपद में किसान मंसूरी धान अधिक उत्पादित करते हैं। यदि बेगूसराय के किसान धान की खेती करने की तैयार कर रहे हैं। तो उनके लिए आज हम एक शानदार समाचार लेकर आए हैं, जिसकी खेती चालू करते ही उत्पादन बढ़ जाएगा।

बेगूसराय जनपद की मृदा एवं जलवायु के अनुरूप दो किस्में विकसित की गईं

मीड़िया खबरों के अनुसार, कृषि विज्ञान केंद्र पूसा ने बेगूसराय जनपद की मृदा एवं जलवायु को ध्यान में रखते हुए धान की दो बेहतरीन प्रजातियों को विकसित किया है। जिसका नाम राजेन्द्र श्वेता एवं राजेन्द्र विभूति है। इन दोनों प्रजातियों की विशेषता यह है, कि यह कम वक्त में पक कर तैयार हो जाती है। मतलब कि किसान भाई इसकी शीघ्र ही कटाई कर सकते हैं। इसकी पैदावार भी शानदार होती है। साथ ही, कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर के कृषि वैज्ञानिक डॉ. रामपाल ने बताया है, कि जून के प्रथम सप्ताह से बेगूसराय जनपद में किसान इन दोनों धान की नर्सरी को तैयार कर सकते हैं।

यहां राजेंद्र विभूति की खेती की जा सकती है

खोदावंदपुर के कृषि विशेषज्ञ अंशुमान द्विवेदी ने राजेंद्र श्वेता व राजेंद्र विभूति धान की प्रजाति का बेगूसराय में परीक्षण किया है। दोनों प्रजातियां ट्रायल में सफल रहीं। इसके उपरांत कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को इसकी रोपाई करने की सलाह दी है। यदि किसान भाई राजेन्द्र श्वेता एवं राजेन्द्र विभूति की खेती करना चाहते हैं, तो नर्सरी तैयार कर सकते हैं। साथ ही, कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर में आकर खेती करने का प्रशिक्षण भी ले सकते हैं। विशेषज्ञों के बताने के मुताबिक, बेगूसराय जनपद के ग्रामीण क्षेत्रों में राजेंद्र विभूति की खेती की जा सकती है।

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विकसित दो किस्मों से प्रति हेक्टेयर चार क्विंटल उत्पादन बढ़ जाता है

बतादें, कि बेगूसराय जनपद में 17061 हेक्टेयर बंजर भूमि पड़ी है। वहीं, 11001 हेक्टेयर भूमि पर किसान खेती नहीं करते हैं। अब ऐसी स्थिति में इन जमीनों पर किसान राजेंद्र विभूति प्रजाति की खेती कर सकते हैं। इस किस्म की विशेषता यह है, कि यह पानी के बिना भी काफी दिनों तक हरा भरा रह सकता है। मतलब कि इसके ऊपर सूखे का उतना प्रभाव नहीं पड़ेगा। साथ ही, यह बेहद कम पानी में पककर तैयार हो जाती है। तो उधर राजेंद्र श्वेता प्रजाति को खेतों में पानी की आवश्यकता होती है। परंतु, इतना भी ज्यादा नहीं होती। दोनों प्रजाति की खेती से प्रति हेक्टेयर चार क्विंटल उत्पादन बढ़ जाता है।
पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

हमारे देश में धान की खेती बहुत बड़ी मात्रा में की जाती है। धान की कई प्रकार की किस्में होती हैं जिनमें से एक किस्म PB1886 है। भारतीय किसान धान की इस किस्म की रोपाई 15 जून के पहले कर सकते हैं। जो 20 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच पककर तैयार हो जाती है। हमारे देश में कृषि को अधिक उन्नत बनाने के लिए सरकार की तरफ से नए नए बीज विकसित किए जा रहे हैं। और फसलों को और अधिक लाभदायक बनाने के लिए कृषि शोध संस्थानों की तरफ से फसलों की नई नई किस्में विकसित की जा रही हैं। यह किस्म न केवल फसलों की पैदावार में वृद्धि करती है। बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि करती हैं।

पूसा बासमती की नई किस्म PB 1886

इसी कड़ी में पूसा ने बासमती चावल की एक नई किस्म विकसित की है, जिसका नाम PB1886 है। बासमती चावल की यह किस्म किसानों के लिए फायदेमंद हो सकती है। यह किस्म बासमती पूसा 6 की तरह विकसित की गई है। जिसका फायदा भारत के कुछ राज्यों के किसानों को मिल सकता है। 

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रोग प्रतिरोधी है बासमती की यह नई किस्म :

बासमती की यह नई किस्म रोग प्रतिरोधी बताई जा रही है। बासमती चावल की खेती में कई बार किसानों को बहुत अधिक फायदा होता है तो कई बार उन्हें नुकसान का भी सामना करना पड़ता है।धान की फसल को झौंका और अंगमारी रोग बहुत अधिक प्रभावित करते हैं। अगर हम झौंका रोग की बात करें इस रोग के कारण धान की फसल के पत्तों में छोटे नीले धब्बे पड़ जाते हैं और यह धब्बे नाव के आकार के हो जाने के साथ पूरी फसल को बर्बाद कर देते हैं। इस वजह से किसान को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही अंगमारी रोग के कारण धान की फसल की पत्ती ऊपर से मुड़ जाती है, धीरे-धीरे फसल सूखने लगती है और पूरी फसल बर्बाद हो जाती है।

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 उपरोक्त इन दोनों कारणों को देखते हुए पूसा ने इस बार धान की एक नई प्रकार की किस्म विकसित की है कि यह दोनों रोगों से लड़ सके। इसके साथ ही पूसा द्वारा यह समझाइश दी गई है कि पूसा की इस किस्म को बोने के बाद कृषक किसी भी प्रकार की कीटनाशक दवाओं का छिड़काव न करें। 

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इन क्षेत्रों के लिए है धान की यह किस्म लाभदायक :

धान की यह किस्म क्षेत्र की जलवायु के हिसाब से विकसित की गई है। इसलिए इसका प्रभाव केवल कुछ ही क्षेत्रों में हैं। जहां की जलवायु इस किस्म के हिसाब से अनुकूल नहीं हैं, उस जगह इस किस्म की धान नहीं होती है। उषा की तरफ से मिली जानकारी के अनुसार वैज्ञानिक डॉक्टर गोपालकृष्णन ने बासमती PB1886 की किस्म विकसित की है जो कि कुछ ही क्षेत्रों में प्रभावशाली है। पूसा के अनुसार यह किस्में हरियाणा और उत्तराखंड की जलवायु के अनुकूल है इसलिए वहां के किसानों के लिए यह किस्म फायदेमंद हो सकती है। 

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 इस किस्म के पौधों को 21 दिन के लिए नर्सरी में रखने के बाद रोपा जा सकता है। इसके साथ ही किसान भाई इस फसल को 1 से 15 जून के बीच खेत में रोप सकते हैं। जो कि नवंबर महीने तक पक कर तैयार हो जाती है। इसलिए इस फसल की कटाई नवंबर में हीं की जानी चाहिए।

धान की किस्म कावेरी 468 की पूरी जानकारी

धान की किस्म कावेरी 468 की पूरी जानकारी

हमने धान की कई किस्में देखी हैं। कुछ किस्में कम समय पर कर तैयार हो जाती हैं तो कुछ किस्मों को पकने में ज्यादा समय लगता है। ऐसी ही धान की एक किस्म कावेरी 468 है जो बहुत ही कम समय में पककर तैयार हो जाती है। धान की इस किस्म की खास बात यह है कि, इस किस्म को किसान रबी और खरीफ दोनों मौसम में बो सकता है। इस केस में पानी के अधिक मात्र की आवश्यकता नहीं होती, जिससे किसान पानी की उपलब्धता कम होने के बावजूद भी इस धान का उत्पादन कर सकता है। धान की एक किस्म रोग प्रतिरोधी भी है। यह कम समय में पक जाने के कारण इसमें हल्दी रोग काफी कम लगता है। 

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कावेरी 468 की खासियत :

धान की यह किस्म कम दिन में पक कर तैयार हो जाती है। जिससे किसानों को खेत में दूसरी फसलें जैसे सब्जियां, सरसों आदि बोने का समय मिल जाता है। इसके माध्यम से किसान और अधिक मुनाफा कमाते हैं। इस किस्म की खास बात यह है कि आप धान की इस किस्म की बुवाई रबी और खरीफ दोनों के मौसम में कर सकते हैं। रबी के मौसम की बात करें तो आप इसकी बुवाई सितंबर से अक्टूबर में और खरीफ के मौसम की बात करें तो आप इसकी बुआई मई और जून में कर सकते हैं। आपने देखा होगा कि अगर किसान किसी फसल की बुवाई करने मैं विलंब कर देते हैं तो उन्हें उस फसल में काफी नुकसान हो जाता है फसल का उत्पादन भी काफी कम होता है। लेकिन धान की यह किस्म इन सभी समस्याओं को देखते हुए बनाई गई है। अगर आप इस किस्म की बुवाई में विलंब कर देते हैं तो भी आपको कोई नुकसान नहीं होगा। 

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हमारे द्वारा अधिकांश रूप से देखा जाता है कि जब तेज हवाएं चलती हैं तो धान के पौधे गिर जाते हैं लेकिन इस किस्म के पौधे काफी हद तक तेज हवाओं का सामना कर सकते हैं। इस किसी के दाने लंबे मोटे और चमकदार होते हैं जो कि धान की इस किस्म को खास बनाता है। इसके पौधों की बालियां लंबी और मोटी होती हैं। 

कावेरी 468 की तैयारी :

यह खरीफ और रबी दोनों की फसल है। रवि के मौसम में आप इसकी बुवाई सितंबर और अक्टूबर में इसके अलावा खरीफ के मौसम में आप इसकी बुवाई मई और जून में कर सकते हैं अगर आप किसी कारणवश इसकी बुवाई जुलाई में भी करते हैं तो भी आपको अच्छा उत्पादन देखने को मिलता है। 

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धान की यह किस्म 115 से 120 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इस फसल के पौधे की लंबाई 105 से 110 सेंटीमीटर होती है। इसमें 15 से 20 कर ले निकल आते हैं और दाने लंबे मोटे और चमकदार होते हैं। जिसके माध्यम से किसान धान की इस किस्म से अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। इसके अलावा अगर हम इस किस्म के उत्पादन की बात करें, इस किस्म का उत्पादन 30 से 35 क्विंटल प्रति एकड़ होता है। और अगर आप इसकी बुवाई सूखा क्षेत्र में करते हैं तो आपको समान रूप से 25 से 28 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन देखने को मिल सकता है। इसका दाना काफी वजनदार होता है जो हमारे किसान भाइयों के लिए काफी लाभदायक होता है। इससे किसान धान की फसल में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। 

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इसके अलावा अगर हम खेतों में बीज दर की बात करें तो 4 से 5 किलो बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है। धान की फसल मौसम के प्रति ज्यादा प्रभावशाली नहीं होती है अर्थात अगर ज्यादा पानी बरसे चाहे ज्यादा पानी ना बरसे फिर भी इस फसल के उत्पादन में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। धान की इस केस में इतनी खूबियां होने के बावजूद भी कुछ खामियां भी हैं। कई बार धान का अंकुरण सही नहीं होता है, ऐसे में किसान भाइयों को तुरंत बीज विक्रेता और कंपनी में सूचित कर शिकायत दर्ज करानी चाहिए, ताकि समय रहते उचित समाधान जैसे पैसे वापस या बदले में सही बीज मिल जाएँ। धान की यह किस्म किसानों की पहली पसंद बनी हुई है क्योंकि यह किस्म कम पानी और कम मिट्टी में भी अच्छा उत्पादन देती है। इन सभी विशेषताओं को देखते हुए धान की यह किस्म किसानों की पहली पसंद बनी हुई है।

धान की किस्म पूसा बासमती 1718, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा

धान की किस्म पूसा बासमती 1718, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा

धान की किस्म पूसा बासमती 1718 : 4 से 5 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार अधिक, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा
धान की एक और किस्म विकसित की गई है जिसका नाम पूसा बासमती 1718 है। धान की इस किस्म से किसानों को अधिक फायदा मिल रहा है। यह किस्म अन्य किस्मों के मुकाबले अधिक पैदावार दे रही है और धान की इस किस्में में बीमारियों का खतरा भी कम है। धान की यह किस्म अन्य किस्मों के मुकाबले 4 से 5 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार अधिक देती है। इस किस्म की धान का दाना लंबा और चमकदार है एवं तना मोटा है। इस फसल से आप अच्छी पैदावार प्राप्त करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

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इस किस्म की धान के लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए अपने खेत में ज्यादा पानी नहीं रुकने देना चाहिए और दूसरा पानी खेत की नमीं को देखते हुए देना चाहिए।

पूसा 1718 की तैयारी :

धान की इस किस्म की बुवाई हम 14 मई से 20 जून के बीच में कर सकते हैं अगर किसी कारणवश हम बुवाई करने में विलंब कर देते हैं तो भी हम इस किस्म से अच्छा उत्पादन कमा सकते हैं।

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इसके साथ ही आप इसकी रोपाई जून के दूसरे सप्ताह से लेकर जुलाई के पहले सप्ताह के बीच में कर सकते हैं। बासमती धान के लिए 4 से 5 किलोग्राम प्रति एकड़ रोपाई की आवश्यकता होती है। इस किस्म की रोपाई में क्यारियों और पौधों के बीच की दूरी पर भी ध्यान रखा जाता है। अगर हम कतार की बात करें तो कतार से कतार के बीच की दूरी 20 सेंटीमीटर इसके अलावा दो पौधों के बीच की दूरी 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए। इसमें आप 110 किलोग्राम प्रति एकड़ नाइट्रोजन अर्थात यूरिया डाल सकते हैं। धान लगाने के 30 दिन के अंदर खेत में यूरिया डाल देना चाहिए। इसके साथ ही खेत में ज्यादा पानी ना रुकने दें और खेत की नमी को देखते हुए ही सिंचाई करें। ऐसा करने से पौधों की लंबाई ज्यादा नहीं बढ़ पाती है। जिससे धान के झड़ने की समस्या नहीं होती।

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पूसा 1718 की विशेषताएं

धान की एक किस्म पूसा 1121 का डुप्लीकेट वर्जन है। यह पूसा 1121 की तरह ही बनाई गई है लेकिन इसमें कुछ परिवर्तन किए गए हैं जैसे पूसा 1121 में लगने वाली गर्दन मरोड़ बीमारी पूसा 1718 में नहीं लगती। इसके साथ ही इस किस्म के पौधे की लंबाई कम और मोटाई ज्यादा है। जिससे इसका दाना गिरता नहीं है। पूसा 1121 का दाना हल्का लाल और पूछा 1718 का दाना हल्का पीला होता है। भारत के 7 राज्यों में किसकी खेती की जाती है जिनमें हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, छत्तीसगढ़ आदि प्रमुख हैं। इस फसल में बीमारी ना के बराबर लगती है जिसके कारण इसमें हम कीटनाशकों का उपयोग ना भी करें तो भी कोई समस्या नहीं जाती। इसके साथ ही अगर हम उत्पादन की बात करें तो किस का उत्पादन 20 से 25 कुंटल प्रति एकड़ होता है जो कि किसानों के लिए लाभदायक होता है।

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धान की किस्म पूसा 1718, पूसा 1121 की समस्याओं को देखते बनाई गई है इससे जो समस्याएं पूसा 1121 की उत्पादन में आती थी वह 1718 के उत्पादन में नहीं आती।
स्वर्ण शक्ति: धान की यह किस्म किसानों की तकदीर बदल देगी

स्वर्ण शक्ति: धान की यह किस्म किसानों की तकदीर बदल देगी

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार परंपरागत धान की खेती से एक किलोग्राम चावल उपजाने में लगभग 3000 से 5000 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। लेकिन कृषि वैज्ञानिकों ने कम पानी में पैदा होने वाले धान की किस्म विकसित की है, जो किसानों के लिए बड़ा उपहार साबित हो सकती है। धान की इस किस्म का नाम है स्वर्ण शक्ति।

स्वर्ण शक्ति धान किस्म

पशु विज्ञान विश्वविद्यालय पटना के अंतर्गत संचालित कृषि विज्ञान केंद्र जमुई ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पटना के विज्ञानियों के साथ मिलकर कई सालों के शोध व परिक्षण के बाद स्वर्ण शक्ति किस्म को विकसित किया है। इसे बाजार में उतारने की अनुमति फसल बीज अधिसूचना केंद्र उप समिति व राज्य बीज उप समिति ने दे दी है। खरीफ सीजन से ही किसान इसकी खेती कर सकते हैं। स्वर्ण शक्ति धान कम पानी में या असिंचित क्षेत्र में भी आसानी से उपजाई और अच्छी पैदावार पाई जा सकती है।

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स्वर्ण शक्ति किस्म की मुख्य विशेषतायें

• स्वर्ण शक्ति किस्म की धान पर सूखे का असर नहीं होता है। • स्वर्ण शक्ति किस्म की धान पौधे 15 दिन तक ओलावृष्टि को सहने में सक्षम है। • यदि बारिश कम होती है तो भी किसान को नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा। • पानी की खपत कम होगी जिससे खेती की लागत कम होगी। • स्वर्ण शक्ति मध्यम अवधि की प्रजाति है जो 115-120 दिन में तैयार हो जाती है। • स्वर्ण शक्ति प्रजाति से 45 से 50 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है।

भूमि की तैयारी कैसे करें

सबसे पहले खेत की एक गहरी जुताई करनी चाहिए, इससे खरपतवार, कीट और रोगों के प्रबंधन में सहायता मिलती है। धान की सीधी बुआई द्वारा खेती करने के लिए एक बार मोल्ड हल की सहायता से जुताई करके फिर डिस्क हैरो और रोटावेटर चलाने के बाद धान की सीधी बुआई द्वारा खेती करें। ऐसा करने से पूरे खेत में बीजों का एक समान अंकुरण, जड़ों का सही विकास, सिंचाई के जल का एक समान वितरण होने से पौधों का विकास बहुत अच्छा होगा और अच्छी उपज हासिल होगी।

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बुवाई का समय

बुआई का सबसे अच्छा समय जून के दूसरे सप्ताह से लेकर चौथे सप्ताह तक होता है। लेकिन किसान भाई जुलाई माह में भी इसकी बुवाई कर सकते हैं।

स्वर्ण शक्ति किस्म की बुआई का तरीका

स्वर्ण शक्ति धान की सीधी बुआई हाथ से अथवा बीज-सह-उर्वरक ड्रिल मशीन द्वारा की जा सकती है। करीब 25-30 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की बीज दर के साथ 3-5 से.मी. गहरी हल-रेखाओं में 20 से.मी. की दूरी पर पंक्तियों में बुवाई की जाती है।

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खाद व उर्वरक की मात्रा

धान के पौधों के उचित विकास के लिए प्रति हैक्टेयर 120 किलोग्राम नाईट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है। बुआई के लिए भूमि की अंतिम तैयारी के समय फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी खुराक और नाईट्रोजन उर्वरक की केवल एक तिहाई मात्रा को खेत में मिला देना चाहिए। बाकि नाईट्रोजन को दो बराबर भागों में बांटकर, एक भाग को बुआई के 40-50 दिनों बाद कल्ले (टिलर) आने के समय तथा दूसरे भाग को बुआई के 55-60 दिनों बाद बाली आने के समय देना चाहिए।

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सिंचाई कब कब करें

बिना कीचड़ और बिना जल जमाव किये स्वर्ण शक्ति धान की खेती सीधी बुआई करके की जाती है। स्वर्ण शक्ति सूखा सहिष्णु एरोबिक प्रजाति है, यदि फसल के दौरान सामान्य वर्षा हो और सही रूप से खेत में वितरित हो तो फसल को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है। सूखे की स्थिति में फसल को विकास की महत्वपूर्ण अवस्थाओं जैसे बुआई के बाद, कल्ले निकलते समय, गाभा फूटते समय, फूल लगते समय एवं दाना बनते समय मिट्टी में पर्याप्त नमी बनाए रखना जरूरी होता है।

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कैसे करें खरपतवार नियंत्रण

धान की सीधी बुआई करने पर खेतों में मोथा, दूब, जंगली घास, सावां, सामी आदि खरपतवार का प्रकोप काफी बढ़ जाता है, जिससे फसल को नुकसान होता हैं। खरपतवारों के नियंत्रण के लिए बुवाई के एक या दो दिनों के अंदर ही पेंडीमेथलीन का 1 किलोग्राम सक्रिय तत्व / हैक्टेयर की दर से छिडक़ाव करना चाहिए। इसके बाद बिस्पैरिबक सोडियम का 25 ग्राम सक्रिय तत्व/ हैक्टेयर की दर से बुआई के 18-20 दिनों के अंदर छिडक़ाव करना चाहिए। आवश्यक हो तो बुआई के 40 दिनों बाद और 60 दिनों बाद निराई की जा सकती है।